होलिका दहन

दिंनाक: 21 Mar 2016 16:47:17


होलिका दहन केवल एक परंपरा या पुराणों में वर्णित केवल कथा कहानी नहीं है। बल्कि ये आरोग्य से भी नाता रखती है। होलिका दहन के दौरान की जाने वाली समस्त क्रियाएं मानव स्वास्थ्य व प्रकृति संवर्धन से जुड़ी हुई हैं। होलिका दहन से आरोग्यता, समृद्धि आती है। ज्योतिर्विदों के अनुसार मंगलवार रात 10.52 से 12.09 बजे तक पुच्छ भद्रा में होलिका दहन करना उत्तम है। होलिका दहन प्रकृति व पर्यावरण संरक्षण के लिए किया जाता है।

शास्त्रों के अनुसार ढूंढ़ा नामक एक राक्षसी प्राणियों को पीड़ा पहुंचाया करती थी। उसके प्रभाव से अन्न गेहूं, जौ, चना आदि फसलों के कीड़े नुकसान पहुंचाते थे। पीडि़त लोग एकत्र हुए और तृण काष्ठ की विशाल ज्वाला से राक्षसी को भयभीत किया। राक्षसी उस क्षेत्र से पलायन कर गई और लोगों को सुरक्षा मिली। तभी से होलिका दहन का शुभारम्भ हुआ।संयोग से इसी पूर्णिमा में होलिका ने जलती हुई ज्वाला में भक्त प्रहलाद को लेकर प्रवेश किया और होलिका जल गई, प्रहलाद बच गए। संस्कारधानी के गली-मोहल्ले में होलिका दहन की तैयारियां की गई है। शहर के गढ़ा भानतलैया, अधारताल, बाई का बगीचा व अन्य स्थानों पर होलिका प्रतिमाएं तैयार की गई।

होलिका दहन से आरोग्यता, राक्षसी प्रवृत्तियों का नाश, नाश व वातारण सुगन्धित होता है। इस दौरान आरोग्यता की प्रार्थना करना चाहिए।