दिंनाक: 06 Mar 2016 10:35:30 |
मां नर्मदा तट भेड़ाघाट अपनी संगमरमरी पहाडिय़ों के लिए विश्व प्रसिद्ध तो है ही साथ ही यहां का ऐतिहासिक व धार्मिंक महत्व भी लोगों की जिज्ञासा का केन्द्र बना रहता है। एक ऐसा ही नाम है बाण कुण्ड। नर्मदा चिंतक पं. द्वारकानाथ शुक्ल शास्त्री के अनुसार शास्त्रों में उल्लेखित है कि नर्मदा के इस स्थान पर दैत्य बाणासुर ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। उसने सवा लाख पार्थिव शिवलिंग निर्माण किया व उनका रुद्राभिषेक कर कुण्ड में विसर्जित करता रहा। इसके बाद शिव इतने प्रसन्न हुए कि इस कुण्ड का हर पत्थर शिवलिंगनुमा गोल होने लगा, साथ ही बाणासुर के नाम से इस कुंड को पहचान मिली।नर्मदा तट के अन्य घाटों व स्थानों पर पाए जाने वाले पत्थर नुकीले व धारदार होते हैं। किंतु इस कुण्ड की विशेषता है कि यहां पाया जाने वाला हर पत्थर गोल व शिवलिंग के आकार का होता है। महंत धर्मेंद्र पुरी का कहना है चूंकि बाणासुर ने रुद्राभिषेक कर इस कुंड में पार्थिव शिवलिंग का विसर्जन किया था, जो प्राण प्रतिष्ठित कहलाते हैं। ऐसे में बाण कुण्ड का हर पत्थर स्वयं प्राण प्रतिष्ठित शिवलिंग है। इनकी स्थापना बगैर प्राण प्रतिष्ठा पूजन से की जा सकती है। यही वजह है कि कुण्ड आने वाले लोग यहां से पिंडी ले जाना नहीं भूलते। संस्कारधानी जबलपुर नर्मदा तट भेड़ाघाट के बाण कुण्ड में नर्मदा अपनी पावन धाराओं से साधारण पत्थरों को भगवान शिव में परिवर्तित कर रही है।
छोटी से छोटी पूजा से प्रसन्न होने वाले देवाधिदेव महादेव सबकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। फिर चाहे उनका पुजारा, सुर-नर या असुर ही क्यों न हो। वे इतनी जल्दी प्रसन्न होते हैं कि अपने भक्त को वरदान देने से नहीं चूकते। एक ऐसे ही राक्षस ने भगवान शिव को प्रसन्न करने लाखों पार्थिव शिवलिंग का निर्माण किया और उन्हें नर्मदा में प्रवाहित कर दिया। राक्षस को तो वरदान मिल गया, लेकिन जिस स्थान पर उसने पार्थिव शिवलिंब बनाए थे, वहां का हर पत्थर शिवलिंग बन गया। जो आज भी देखे जा सकते हैं।
मेकलसुता का यह कुण्ड सदियों से आस्था और विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। इसलिए भी इस कुण्ड के शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा नहीं करनी पड़ती और सीधे देवस्थान पर स्थापित कर पूजन किया जा सकता है। इसी कुण्ड के पास कल्चुरीकालीन मंदिर में विद्यमान भगवान शिव और पार्वती के विवाह प्रसंग की अनोखी प्रतिमा स्थापित है, जो संपूर्ण भारत में कहीं और देखने नहीं मिलती।