2016-17 के लिए प्रस्तुत किये गए रेल बजट के समर्थन में

दिंनाक: 16 Mar 2016 11:23:58


मैं माननीय प्रधानमंत्री जी के प्रति आभार प्रगट करता हूँ कि भारतीय रेल को विश्व में भारत के प्रति बदलते हुए नजरिये के साथ ही देश के आम आदमी मजदूर, किसान गाँव और महिलाओं की सुविधाओं और उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप बनाने का उन्होंने जो विजन दिया है | भारतीय रेल उसी दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है |
मैं माननीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु जी को भी बधाई देना चाहता हूँ जिन्होंने अपने सहयोगी राज्यमंत्री माननीय मनोज सिन्हा के साथ बहुत मजबूती और सक्षमता का परिचय देकर चुनौतियों से भरे इस समय में भारतीय रेल को नेतृत्व प्रदान कर सही और सार्थक दिशा देने की सफल कोशिश की हैं |
भारतीय रेल के लिए यह वास्तव में चुनौती से भरा यह समय है कि विरासत में मिले हुए भारतीय रेल के इस हाफ्तें हुए तंत्र को उसके हाल पर छोड़कर उसी लीक पर चलने दिया जाये जिस पर ये बरसों से चल रहा हैं, या उसे लीक से हटाकर एक स्वस्थ तंत्र के रूप में विकसित किया जाये |
और मैं पुनः बधाई देना चाहता हूँ माननीय सुरेश प्रभु जी को कि उन्होंने स्वस्थ तंत्र के रूप में विकसित करने का साहसिक मार्ग चुना हैं|
भारतीय रेल राजनैतिक और आर्थिक दृष्टि से सम्पूर्ण भारत को जोड़ने का एक सशक्त माध्यम होने के साथ-साथ भारत की विविधता में भारतीयता का जीवन दर्शन भी हैं |
- अगर हम नेटवर्क की दृष्टि से देखते है तो भारतीय रेल दुनिया में तीसरे स्थान पर हैं |
- मालभाड़ा यातायात की दृष्टि से दुनिया में चौथे स्थान पर हैं |
- प्रति किमी यात्रियों की दृष्टि से यह दुनिया में पहले स्थान पर हैं |


दुर्भाग्य से अभी तक यही माना जाता था कि रेल में अच्छी सुविधाओं का मतलब है उच्च श्रेणी या ए सी श्रेणी में चलने वाले यात्रियों को सुविधा देना |
और इसलिए एक सामान्य श्रेणी में चलने वाला हमारे किसी गरीब भाई, किसान, युवा , या माता बहनों के लिए रेल यात्रा का मतलब कष्ट उठाना होता था | गन्दगी से भरी हुई बोगियां, गंदे शौचालय, बिना बिस्तर के बुजुर्गों अथवा छोटे-२ बच्चों के असुविधाजनक बर्थ पर सुलाने को मजबूर माताएं – बहने |
एक हाथ से लाठी का सहारा और कांपते हाथों से पोटली लेकर शौचालय के पास खड़ी वृद्धा कभी इनकी कठिनाई पर किसी ने विचार किया |
यही माना जाता रहा है कि यह कष्टप्रद यात्रा सामान्य श्रेणी में चलने वाले लोगो की नियति हैं | इनकी सुविधाओं पर विचार करने का मतलब रेलवे पर आर्थिक बोझ डालना, यही तो सोच रही हैं |
लेकिन आज हम गर्व के साथ इस सदन में कहना चाहते है कि सरकार बदलने के साथ ही सोच बदल गई है | प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी के नेतृत्व वाली यह सरकार, आम जनता की सरकार है, गाँव, गरीब, किसान, युवां, मजदूर और महिलाओं की हितैषी सरकार हैं |
इसलिये, अब सुविधाओं का अधिकार इनको भी मिलेगा | महोदया, बातें छोटी –छोटी है लेकिन परिणाम बड़ा है और इसलिए सुरेश प्रभु जी ने इस बजट में निर्णय किया है कि अब सामान्य श्रेणी के डिब्बों में साफ-सफाई रहे इसके लिये वहां भी कूड़ेदान होंगे |
यात्रा के दौरान ऑन बोर्ड हाउसकीपिंग के जरिये (एक हज़ार गाड़ियों में) साफ –सफाई की व्यवस्था होगी |
अब सामान्य श्रेणी के यात्रियों को भी आवश्यकतानुसार डिस्पोजेबल बिस्तर मिलेंगे |क्या सामान्य श्रेणी में चलने वाले लोगों को कडकडाती हुई ठण्ड में बिस्तर की जरुरत नहीं होती |
जरुर होती है हमसे आपसे ज्यादा होती है क्योंकि उसके पास तो ठीक से गर्म कपडे भी नहीं होते |
लेकिन दुर्भाग्य यह है महोदया की पहले तो सामान्य श्रेणी को केटल-क्लास माना जाता था | एक मंत्री का तो यही बयान था | लेकिन यह सरकार ऐसा नहीं मानती, बल्कि यह मानती है कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ गरीब का है किसान का है, जरुरतमंदों का है और इसलिए हम यह करने जा रहे है और यही इस सरकार का मानवतावादी चेहरा हैं |

साफ सफाई और स्वच्छता की दृष्टि से ही रेल मंत्रालय ने माननीय सुरेश प्रभु जी के नेतृत्व में इस 17000 बायो टॉयलेट बनाने का निर्णय लिया है और अगला लक्ष्य 30000 टॉयलेट्स का हैं |
क्योंकि, यह विषय मात्र स्वास्थ्य और स्वच्छता का भर नहीं हैं बल्कि हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान का भी हैं ताकि फिर से कोई भारतीय रेल को खुला शौचालय न कह सके | जैसा पूर्व के एक मंत्री ने कहा था और पूरे देश ने अपमानित महसूस किया था |
हमारे रेल मंत्री यही नहीं रुके है | आज सूचना तकनीक का युग है दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है हमारा ग्रामीण युवा भी दुनिया भर में अपनी पहचान बना रहा हैं |
लेकिन देश में सामान्य श्रेणी में यात्रा करने वाला हमारा युवा हो या गरीब किसान, मजदूर या हमारी कोई बहन बेटी सभी के परिवार हैं और सभी के परिजनों को यात्रा पर गए हुए अपने बेटा बेटी, माँ बहन और पिता की चिंता होती है आज सभी के पास मोबाइल है लेकिन सामान्य श्रेणी में यात्रा करने वालों को मोबाइल चार्जिंग की सुविधा नहीं है क्या उनके परिजनों की संवेदनाएं सर्कार की संवेदनाएं नहीं है कम से कम इस सरकार की तो हैं |
और माननीय प्रधानमंत्री जी ने तो डिजिटल इंडिया का नारा दिया हैं इसलिए इस सरकार में तय किया है कि वातानुकूलित और रिजर्व्ड श्रेणी की तरह सामान्य श्रेणी में भी पर्याप्त मात्रा में चार्जर दिए जायेंगे |
अरे आप सुविधाएँ तो छोडिये एक चार्जर भी आम आदमी के लिए उपलब्ध नहीं करा पाये |
यात्री सुविधाओं एवं सुरक्षा के विषय में माननीय रेल मंत्री जी द्वारा यात्रियों को अपना बीमा करवाने का विकल्प उपलब्ध करवाया गया हैं वह स्वागत योग्य हैं | जिससे एक ओर जहाँ रेलवे पर भार नहीं आएगा वही इसका लाभ लेने वाले व्यक्तियों के परिजनों को भविष्य की सुखद गारंटी मिल सकेगी |
जब हम सुविधाओं की बात करते है तो दिव्यांगों को कैसे भूल सकते है वे हमारे ही अंग है इसलिए पहली बार इनके लिए अलग से टॉयलेट्स, व्हील-चेयर ऑन डिमांड, वन टाइम रजिस्ट्रेशन के साथ सभी ने सवारी डिब्बों में ब्रेललिपी की बात हमने की हैं | और यह सबकुछ हमारे रेल मंत्री ने अपने जिम्मेदारी मानकर किया है मानवीय संवेदनाओं के साथ किया हैं जो वास्तव में पहले ही दिखाई जाना चाहिए था |
मैं मान्यवर, रेल मंत्री जी का और एक बात के लिए विशेष अभिनन्दन करता चाहूँगा की रेलवे की विभिन्न घोषित परियोजनाओं के कार्यान्वयन को अमलीजामा पहनाने को अब तक कम से कम २ या अधिक साल का समय लगता था | जिसमे निविदा (Tendering) बगैरह विषय शामिल होते हैं |
अब अधिकांश अधिकारों का विकेंद्रीकरण क्षेत्रीय स्तर तक कर यह समय 6 से 8 माह तक सिमित किया गया हैं | इससे वर्तमान (मंत्रीजी) सरकार का शासन करने का उच्च स्तर पर दिखाई देता हैं |
मोदी सरकार की Minimum Government, Maximum Governance इससे सिद्ध होता है |
यह निर्णय लेने का जो समय घटा है उसके पीछे हमारे सरकार की स्पष्ट नीति और नेक नियती है | अन्यथा यह पूर्व में अनेक वर्षों में क्यों नहीं हुआ इसका भी विचार होना चाहिए |
इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि आज़ादी के इतने साल के बाद भी हमारे रेल मंत्री जी को यह कहना पड रहा है कि हम स्टेशनों पर वाटर वेंडिंग मशीन उपलब्ध कराएँगे |





60 सालों में अरे आप तो पीने का साफ पानी भी उपलब्ध नहीं करा सके |
और इसलिए, हम गर्व के साथ कहना चाहते है कि यह रेल बजट न सिर्फ उच्च तकनीक, इंफ्रास्ट्रक्चर, गति और समृधि की ओर जाने वाला बजट भर नहीं है बल्कि यह बजट हमारी सरकार का गरीब, मजदूर, किसान, युवा, महिलाओं के प्रति मानवीयता का प्रतीक भी हैं |
हमने इस वर्ग को विश्वास दिलाया है कि वे स्वच्छ, सुरक्षित और सस्ती रेल यात्रा के अधिकारी हैं |
और इसलिए हमारे रेलमंत्री ने कहा है कि “आओ मिलकर कुछ नया करे “|
आज स्थिति इतनी बदल गई है कि आज रेल में यात्रा करने वाला यात्री अचम्भे में हैं |
मेरे क्षेत्र के व्यक्ति ने बताया की रेल का सफ़र कर वे रेलवे स्टेशन से अपने घर जा रहे थे तभी उनके मोबाइल पर फ़ोन आया जिस पर तीन डिजिट का एक नंबर था फ़ोन उठाया तो एक रिकार्डेड कॉल सुनाई दी उस तीन डिजिट की रिकार्डेड कॉल से उनसे यात्रा का फीडबैक माँगा जा रहा था |
उन्होंने मुझे फ़ोन किया और बधाई दी की उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि भारतीय रेल ऐसा कर सकती हैं |
महोदया, आज से तीन डिजिट आम रेलयात्री के सम्मान का सूचक बन गए हैं आज देश के एक साधारण व्यक्ति, एक ग्रामीण व्यक्ति, इ युवा और माता बहन को यह अहसास दिला रहे है कि देश की सबसे बड़ी पंचायत से चंद क़दमों की दूरी पर रेलभवन में बैठे हुए मंत्री, रेलवे के अधिकारी उस आम रेलयात्री की यात्रा कैसी रही इसकी चिंता कर रहे हैं | और ये तीन डिजिट है 139.
केवल इतना ही नहीं, हमारी रेल से यात्रा करने वाली कोई माँ जिसका बच्चा भूखा है हमारी कोई बहन जो किसी से खतरा महसूस कर रही हो या कोई बीमार जिसको तत्काल इलाज की आवश्यकता हो |

केवल तकनीक का सहारा लेकर खुद या किसी सहयात्री के माध्यम से ट्विटर पर सन्देश भेजते है और तत्काल सहायता उपलब्ध हो जाती हैं |
यह कोई साधारण काम नहीं हैं की रोज पांच हज़ार से अधिक ऐसे सन्देश आयें और उन पर कार्यवाही हो |
लेकिन यह असाधारण कार्य सिर्फ इसलिए हो पा रहा है कि हमारी सरकार हमारे रेल मंत्री के भीतर देश के एक साधारण यात्री से संवाद करने उसकी तकलीफ दूर करने के लिए मानवीय संवेदनायें हैं |
जब भी कोई तकनीक आती है तो आमतौर पर माना जाता है कि तकनित की अपनी कोई संवेदना नहीं होती |
लेकिन यहाँ अत्यंत आधुनिक तकनिक के उपयोग के बाद भी हमारे रेल मंत्री ने एक Human Face (एक मानवीय चेहरा) इस तकनीक को दिया है | और यह मानवीय चेहरा ही इस सरकार का चेहरा हैं |
और यही हैं हमारा आव्हान कि “आओ मिलकर कुछ नया करें” |
प. दीनदयाल उपाध्याय जी ने कहा था कि समाज की अंतिम श्रेणी में बैठे हुए व्यक्ति को समाज की मुख्यधारा में लाये बिना देश आगे नहीं बढ़ सकता और यह सरकार यही कर रही है |
इस देश की 65 प्रतिशत आबादी गाँव में रहती है एक बड़ी आबादी शहरों में रहने वाली भी ऐसी है जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं | वातानुकूलित डिब्बे में या रिजर्वेशन लेकर यात्रा इनकी क्षमता के बाहर हैं |
लेकिन इस बजट में इनकी भी चिंता की गई है ऐसे लोगों की सुविधाजनक यात्रा के लिए सामान्य श्रेणी की सुविधायुक्त कोंचों के साथ लम्बी दूरी की यात्राओं के लिए अन्त्योदय एक्सप्रेस और दीनदयालु डिब्बे निर्णय लिया गया हैं |
देश के आम आदमी की सुविधा के लिए ही ऑपरेशन 5 मिनट हैं | एक हज़ार सात सौ अस्सी आटोमेटिक वेंडिंग मशीने लगाई भी जा चुकी हैं |
इ-टिकटिंग मशीनों की क्षमता भी अब प्रति मिनट दो हज़ार से सात हज़ार कर दी गई है अब एक ही समय में एक लाख बीस हज़ार लोग इसका उपयोग कर सकते हैं |
और यहाँ फिर यही है “आओ मिलकर कुछ नया करे” |
जिस तरह से इस रेल – बजट में देश की महिलाओं और वरिष्टजन का ख्याल रखा गया हैं वह पहले भी किया जा सकता था | इस रेलबजट में महिलाओं के लिए निचली शायिकाओं के लिए निर्धारित कोटे में 33 फीसदी बढ़ा और सीनियर सिटीजन के कोटे में भी पचास प्रतिशत बढ़ा दिया गया हैं |
महिला सुरक्षा के लिए अखिल भारतीय चौबीस घंटे की हेल्पलाइन 182 बताती है कि हमारी सरकार, हमारे रेलमंत्री महिला सुरक्षा को लेकर कितने सजग हैं |
रेलमंत्री जी ने जिस तरह रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए तकनीक का सहारा लेने की कोशिश की है, उसे समझना चाहिए | भारतीय रेल का “शून्य दुर्घटना” रोडमैप तैयार करने के लिए जापान के रेलवे टेक्निकल रिसर्च इंस्टिट्यूट और कोरियन रेल रिसर्च इंस्टिट्यूट के साथ रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए साझेदारी की | ताकि दुर्घटना में किसी का भाई, किसी का बेटा या पति, किसी की माँ बहन, बेटी या पत्नी को जान न गवाना पड़े |
हम कैसे भूल सकते हैं कि विश्व में हुई पचास बड़ी रेल दुर्घटनाओं में अकेले 30 भारत में ही हुई थी |
क्या किसी सरकार ने ये सोचा कि कैसे देश के युवा को भारतीय रेल से जोड़ा जाएं?
इस देश के रेलमंत्री ने इस रेलबजट में देश की युवा शक्ति को भारतीय रेल की विकास की धारा से जोड़ने की कोशिश की है।
कैसे भारतीय रेल देश के युवाओं के लिए रोजगार उत्पन्न करें।
इस रेलबजट में मेरे के युवाओं को कुछ नया सोचने के लिए प्रेरित करने की कोशिश की गई है। इस रेल बजट में हर साल भारतीय रेल देश के इंजीनियरिंग और प्रबंधन संस्थानों के सौ प्रतिभावान छात्रों को दो से छह महिने की इंटर्नशिप कराएगी।
रेलवे के कर्मचारियों के बीच में यदि कोई रेलवे से जुडा स्टार्टअप शुरु करना चाहता है, तो रेलवे उसके लिए मदद करेगी, जिसके लिए बाकायदा पचास करोड़ रुपये की धनराशि का आवंटन इस रेल बजट में किया गया है।
इसी तरह रेलवे स्टेशनों की साफ-सफाई और अन्य मूलभूत सुविधाओं के लिए एनजीओस् की मदद ली जा रही है, जिससे इस देश का युवा और महिलाये भारतीय रेल के सफल संचालन में अपनी भागीदारी दे सके।
इसी तरह खादी ग्रामोद्योग के साथ भागीदारी कर 17 लाख श्रम दिवस का रोजगार उपलब्ध कराने की है।
देश में पहली बार यह सोचा गया कि भारतीय रेल जिसके पास अपना सौ टेराबाईट से ज्यादा डाटा होता है इससे भी रेल के भविष्य की संभावनाओं पर सोचा जा सकता है लेकिन इसके उपयोग के बारे में पहले कभी नहीं सोचा गया |
लेकिन ये देश बधाई देना चाहता है हमारे रेल मंत्री को अब रेलवे इस Big Data का एनालिसिस करेगा ताकि रेलवे के संसाधनों का अधिकतम दोहन कर इसकी पूरी क्षमता का उपयोग किया जा सके |
रेलमंत्री जी ने नहीं कहा लेकिन मैं कह रहा हूँ कि कई बार कुछ विशेष समय पर ट्रेन फूल होकर जाती है और कई बार कुछ विशेष समय म्कुछ या अधिक खाली भी जाती हैं |
ये जो डायनामिक्स है इनके आधार पर यह तय हो सकता है कि किस समय ट्रेन को फूल रैक्स के साथ चलाना उचित है और कब कम रैक्स के साथ चलाना उचित है ताकि रेलवे के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद भी हो और क्षमता का ठीक उपयोग भी हो सके |
इस सबके लिए एक टास्कफोर्स बनाई है जिसे नाम दिया है सूत्र (स्पेशल यूनिट फॉर ट्रांसपोर्टेशन रिसर्च एंड एनालिटिक्स) और यही सूत्र भविष्य की रेल के चेहरे को सवारने का काम करेगा |
आईआरसीटीसी की बेबसाइट को भारत में सबसे ज्यादा हिट्स मिलते है...हम सब जानते है कि इन्टरनेट की दुनिया में किसी साइट्स पर हिट्स क्या मायने रखते हैं ?

हमारे रेलमंत्री जी ने रेल बजट में आईआरसीटीसी बेबसाईट पर हिट्स से भी भारतीय रेल के लिए राजस्व अर्जित करने का तरीका खोज निकाला है......भारतीय रेल की ये बेबसाईट इ-कॉमर्स के लिए देश का सबसे बेहतरीन प्लेटफ़ॉर्म हो सकती हैं |
सदन इस बात को जानता हैं कि भारतीय रेल की आईआरसीटीसी बेबसाईट दुनिया की सबसे ज्यादा हिट्स पाने वाली पांच सौ बेबसाइट्स में शामिल है | भारत जैसे दुनिया के चालीस करोड़ लोगों के सबसे बड़े उपभोक्ता समूह वाले देश में ये सबसे ज्यादा देखी जाती है, फिर क्यों नहीं हम हमारी इस तकनीकी ताकत का फायदा, हमारी भारतीय रेल के वित्तीय हालात मजबूत करने के लिए करें |
किराये से हटकर राजस्व बढ़ाने का एक और तरीका इस रेल बजट में हमारे रेलमंत्री जी ने सदन के समक्ष रखा है | वो है रेल की परिसम्पतियों पर विज्ञापन के बेहतर प्रबंधन से राजस्व अर्जित करना | हर एक दिन हमारी रेलगाड़ियों में दो करोड़ से ज्यादा लोग सफ़र करते है, करीब इतने ही हमारे रेलवे स्टेशनों पर आते है, मतलब हमारी रेल परिसम्पतियों पर फूट फॉल तक़रीबन पांच करोड़ या उससे ज्यादा होता है, वो भी रोजाना |
इसका मतलब, किसी यूरोपियन देश की जनसँख्या से ज्यादा लोग तो रोज हमारी रेलवे की परिसम्पतियों पर आतें है, और यदि इस ग्राहक शक्ति का बेहतर ढंग से प्रबंधन किया जाये, तो क्या हम हर साल करोड़ों रुपये का राजस्व रेलवे के रूप में नहीं बढ़ा सकते ? यही तो हमारे रेलमंत्री जी रेलबजट में कह रहें हैं |
इसलिए इस रेल बजट में अगले तीन महीनों में देश के करीब 20 रेलवे स्टेशनों पर इस तरह की परियोजनाओं पर काम होगा | और इस बार विज्ञापन से अर्जित राजस्व को चार गुना करने का लक्ष्य रखा गया है | ये है नई सोच, कुछ नया करने की ढृढ़ इच्छा शक्ति...इसलिये तो हमारे रेलमंत्री जी ने कहा है – “आओ मिलकर कुछ नया करें” |
सरकारों में दूरदृष्टि की कमी का खामियाजा किस तरह से देश को भुगतना पड़ता हैं उसका एक उदहारण हैं |
सन १८७३ में एक किताब प्रकाशित हुई थी “अराउंड द वर्ल्ड इन एट्टी डेज” | यहाँ बैठे हुए बहुत सारे लोग जानते है इस पर कई फिल्मो का निर्माण भी हुआ हैं |
एक अंग्रेज थे फिलिप फ़ाग जिन्होंने एक शर्त लगाई कि वे अस्सी दिनों में पूरी दुनिया का भ्रमण कर लेंगे |
इसके लिए बाकायदा प्लानिंग होती है और मिस्र से स्वेज नहर होकर वे भारत आये मुंबई पहुंचे यहाँ से उन्हें कलकत्ता जाना था |
मुंबई से कलकत्ता तक की दूरी ट्रेन से तय करने वे कलकत्ता तक ट्रेन का टिकेट लेते है तीन दिनों में यात्रा पूरी हो यह भी तय होना था लेकिन आधे रस्ते में उन्हें मालूम होता है कि ट्रेन डायरेक्ट कलकत्ता तक नहीं जाती |
इसलिए खोल्बी या ऐसे किसी स्टेशन पर उतरकर वे वहां से इलाहाबाद तक की यात्रा हाथी पर बैठकर पूरी करते हैं |
फिर इलाहाबाद से कलकत्ता की यात्रा ट्रेन से पूरी करते हैं |
अपनी पुस्तक में वे इस बात का जिक्र करते है | लेकिन उस समय की कार्ययोजना के अनुसार वर्तमान का मुंबई-कलकत्ता ट्रेन रूट बिछता हैं |
लेकिन अंग्रेजों को यह भी ध्यान में आता है कि 2000 किमी से अधिक का यह रूट परिवर्तित कर छोटा किया जा सकता हैं | और १९२५ में अपेक्षाकृत छोटे रूट के लिए चिरमिरी से बरवाडीह के बीच ट्रैक बिछाकर वर्तमान मुंबई हावड़ा रूट को उससे जोड़ने का सर्वे हुआ |
इस रूट में लगभग 300 से 400 किमी की दूरी कम होनी थी |



दुर्भाग्य यह है महोदया जिस बात को अंग्रेजों ने सोचा आज़ादी के बाद की सरकारों ने उस पर विचार भी नहीं किया | 1999 में पुन: इस पर सर्वे आरम्भ हुआ |

किन्तु बाद की सरकारों ने इसे फिर ठन्डे बसते में डाल दिया | फिर सुश्री ममता जी के समय इसे स्वीकृति देने का प्रयास हुआ |
किन्तु, गर्व के साथ इस सदन में कहना चाहता हूँ कि देश के इतने महत्वपूर्ण रूट पर दूरी कम करने पर विचार करने से पहले की सरकारों ने 65 साल लगा दिए |

किन्तु यदि इसे स्वीकृत कर इसके लिए प्रारंभिक पांच करोड़ रुपये की राशि का आवंटन हुआ तो अब माननीय सुरेश प्रभु जी ने इसको किया |

सदन इस पर विचार करे की पूर्व की सरकारों ने इसको किया होता तो यह लगभग 300 – 400 किमी की कम दूरी रेलवे का कितना राजस्व बचाती |
रेलवे का राष्ट्रिय सुरक्षा में भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान एवं योगदान हैं |
इसलिए अपने पडोसी देश चीन में रेलवे का जो गत वर्षों में विकास/विस्तार हुआ है उसकी तरफ ध्यान देना ही होगा | एक समय था जब चीन रेल नेटवर्क के मामले में हमसे बहुत पीछे थे |
अपने देश में स्वतंत्रता के पश्चात् १९५०-५१ में रेल का नेटवर्क था 53596 किमी जो अब जाकर 65800 किमी हुआ है | (यानि हमने कूल 12204 किमी ही पटरियाँ बिछाई हैं) और चीन में 1949 में 31800 किमी नेटवर्क था | जो 1975 में 46000 किमी पर पहुंचा था |
१९९५ में चीन और भारत बराबरी पर थे | किन्तु आज चीन उसके बाद चीन ने 121000 किमी नेटवर्क का निर्माण किया और हम ६५८०० तक ही पहुंचे | कौन हैं इसके लिए जिम्मेदार ?
स्वतंत्रता के पश्चात 68 वर्षों में हम रेल नेटवर्क में ट्रैक ११००० किमी को जोड़ने में सफल हुए | जबकि चीन में 2006 से 2011 के बीच में ही 14000 किमी ट्रैक का निर्माण किया |
पूर्व की सरकार ने अपने लम्बे शासनकाल में क्या किया यह देश के सामने हैं |
इनके पिछले 30 सालों में 197883 करोड़ रुपये की लागत की 676 परियोजनाएं स्वीकृत की गई थी और उनमे से मात्र 317 को ही पूरा किया गया |
शेष बची हुई 359 परियोजनाओं को पूरा करने इनके ही कार्यकाल में 182000 रुपये से अधिक की आवश्यकता उस समय थी |
पिछले १० वर्षों में क्या हुआ था ७ हज़ार करोड़ रुपये की 99 नई लाइन परियोजनाओं को स्वीकृत किया गया था | सदन को आश्चर्य होगा कि उसमे से मात्र एक परियोजना ही ये पूरी कर पाए थे |
आखिर किसके भरोसे ये इन परियोजनाओं को छोड़ रहे थे | क्यों राजनैतिक आधार पर निर्णय लिए गए |
२०१३-१४ का इनका बजट तो पूर्ण बजट (फुल फ्लेज्ड) बजट था | उसमे भी इन परिस्थितियों से कैसे निपटेंगे कोई विजन नहीं था |
उस समय के अपने भाषण में इन्होने माना था कि रेल की सुरक्षा और विकास के लिए बनी हुई काकोडकर समिति और सैम पित्रोदा की समितियों में से केवल कुछ पर काम शुरू हुआ है | बाकि सिफारिशों पर विचार चल रहा हैं |
हम नहीं कह रहे कि इन्होने कुछ नहीं किया बल्कि ये बता रहे हैं की इन्होने क्या किया ?
वर्ष १९६० में एक कुंजरू समिति बनी जी रेलवे सेफ्टी रिव्यु समिति थी उसने भी सिफारिशें दी |
वर्ष १९६८ में वांगचु कमिटी बनी वह भी रेलवे सेफ्टी रिव्यु कमिटी थी उसने भी सिफारिशें दी |
फिर १९७८ में सिकरी कमिटी बनी वह भी रेल सेफ्टी के बारे में थी | फिर जस्टिस खन्ना की अध्यक्षता में खन्ना कमिटी बनी | जिसके लिए कहा गया कि वह तब तक बनी हुई तमाम कमेटियों की सिफारिशों का अध्धयन कर सरकार को बताएगी |
यह ये रुके नहीं फिर काकोडकर जी की अध्यक्षता में हाई लेवल रेलवे सेफ्टी रिव्यु कमिटी बनाई गई |
फिर आधुनिकीकरण को लेकर सैम पित्रोदा की अध्यक्षता में पित्रोदा समिति बनी |
इतनी कमेटियां बनी लेकिन ५० वर्षों से अधिक समय देश चलाकर मात्र 11 हज़ार किमी रेल लाइन जोड़ पायें |
रेलवे ट्रैक्स में से आधे का भी इलेक्ट्रिफिकेशन नहीं कर पायें |
सिर्फ कमेटियों बनाने से ही देश का विकास नहीं हो सकता | उनकी सिफारिशों को मानने और लागु करने इच्छा शक्ति भी चाहिए |
कमेटियां माननीय सुरेश प्रभु जी के समय भी बनी लेकिन निश्चित अवधि के लिए डा. विवेक देवरॉय समिति बनी उसने रेल विकास प्राधिकरण बनाने सुझाव दिया सिंद्धातत: मान भी लिया गया है | काकोडकर समिति की 106 में से अधिकांश पर ठोस कार्यवाही भी प्रारंभ हो चुकी हैं |
श्रीधरन कमिटी की रिपोर्ट थी अधिकारों का विकेंद्रीकरण स्वीकार हो गया |


भेदभाव रहित विकास का सबसे बड़ा उधाहरण अगर कोई सरकार हैं तो यह माननीय मोदी जी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार हैं |
हम कैसे भूल सकते है कि पूर्व में भी अन्य दलों से रेल मंत्री रहे हैं विशेष रूप से बिहार से |
पूर्व के रेल मंत्री माननीय लालू यादव जी ने २००६-०७ में और २००७-०८ के बजट में बिहार के मधेपुरा और मधौरा में रेल फैक्ट्री की घोषणा की थी लेकिन ८ वर्ष बीत गए, महोदया क्या हुआ ? दोनों परियोजनाएं मात्र घोषनाये बनकर रह गई थी |
लेकिन इस सदन में इस गर्व के साथ कह सकते हैं कि बिहार के साथ भी यदि किसी ने न्याय किया तो माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में हमारे रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु जी श्री मनोज सिन्हा जी ने किया |
और इस बजट में इसके लिए PPP के अंतर्गत 40 हज़ार करोड़ रुपये की बोलियों को अंतिमरूप दिया गया हैं |
आज प्रसंन्नता हैं कि इसी मेक इन इंडिया योजना के तहत २ विदेशी कंपनियों के साथ यह परियोजनाएं प्रारंभ होने जा रही हैं |
मैं ऐसा मानता हूँ कि सदन इस बात को जनता हैं की बिहार में किसी भी विदेशी कंपनी का यह अब तक का सबसे बड़ा निवेश हैं | यह हैं कथनी और करनी में एकरूपता |
लेकिन, दुख होता है मैं एक चैनल पर माननीय नितीश कुमार जी को सुन रहा था कि रेल बजट अच्छा नहीं हैं | लेकिन इसके बाद भी हम यहाँ बैठे बिहार के अपने साथी सांसदों को बधाई देते हैं कि प्रधानमंत्री जी और रेल मंत्री जी ने बिहार के विकास को पंख लगायें हैं |
असल में आज जरुरत है वो रेलवे के समूचे ढांचे का आमुल चुल परिवर्तन करने की जरुरत हैं | वर्तमान में भारतीय रेल राष्ट्र की जीवन रेखा है जो अपने १७ क्षेत्रीय तथा ६८ मंडल द्वारा प्रशासित होती हैं |
गत वर्षों में यात्री गाड़ियों की संख्या तो उतरोत्तर बढती गई जो २००१-०२ में ८८९७ थी वो अब १२३३५ हो गई हैं और यह गाड़ियां ६६००० किमी लम्बे ट्रैक पर ही दौड़ रही हैं | ट्रैक की लम्बाई में गाड़ियों के अनुपात में इजाफा नहीं हुआ |