बायोटॉयलेट के काम में अप्रत्याशित तेजी

दिंनाक: 11 Apr 2016 11:03:05


पश्चिम मध्य रेलवे के जबलपुर जोन ने जितने बायोटॉयलेट एक साल में लगाए हैं, उतने 10 साल में भी नहीं बने थे। 9 साल में मात्र 100 कोच में 400 बायोटॉयलेट लगाने का काम हुआ है जबकि पिछले एक साल में ही 650 कोच में 2600 बायोटॉयलेट लगा दिए गए हैं। रेलवे हर कोच में बॉयोटायलेट लगाना चाहती है और इसलिए हर महीने इसकी समीक्षा शुरू कर दी है। इसी का परिणाम है कि बायोटॉयलेट के काम में अप्रत्याशित तेजी आई है। जबलपुर जोन में भोपाल कोच फैक्टरी में बायोटॉयलेट लगाए जाते हैं जिसमें सभी जोनों के कोच में बायोटायलेट लगाए गए हैं।

स्टेशन पर प्लेटफार्म की गंदगी साफ करने पर रेलवे ने खास जोर दिया, लेकिन प्लेटफार्म से लगी पटरियों को साफ नहीं कर सका। कोच में बॉयोटायलेट लगाए गए, लेकिन सभी ट्रेनों और कोच में नहीं लग सके जिस कारण पटरियां साफ नहीं हो पाईं। बायोटायलेट में नीचे सेप्टिक टैंक होता है, जिससे गंदगी पटरियों पर न गिरकर सेप्टिक टैंक में आ जाती हैं। इसका सिस्टम उसे लिक्विड में बदल देता है। मेंटेनेंस के समय इस पानी को पटरियों या आस-पास छोड़ दिया जाता है।

हमारे जोन के कोच में बायो टायलेट की स्थिति:

• जबलपुर- 621 कोच हैं, जिसमें 145 कोच में बायो टायलेट लग चुके हैं।
• भोपाल- 377 कोच हैं, जिसमें 95 कोच में बायोटायलेट लगे हैं।
• कोटा- 316 कोच हैं, जिसमें 79 कोच में बायोटायलेट लगे हैं।

भोपाल में लग रहे कोच

• एक कोच में 4 बायोटायलेट लगते हैं, एक कोच में यह सिस्टम 3 लाख रुपए में लगता है।
• पश्चिम मध्य रेलवे में 1305 कोच हैं, लेकिन तकरीबन 319 कोच में ही यह सिस्टम लगा है।
• पमरे सिर्फ अपने जोन के नहीं बल्कि अन्य जोन के कोचों में भी बायोटायलेट लगाता है।
• पमरे के कोच फैक्ट्री भोपाल में यह काम किया जा रहा है।
• देश में तकरीबन 50 हजार कोच हैं, जिसमें 17 हजार कोच में बॉयोटायलेट लग चुके हैं।

2015 और 2016 में रेलवे बोर्ड ने बायोटायलेट लगाने का जो टारगेट दिया था, वह पूरा हो गया है। इस साल 2600 बायोटायलेट लगाए गए। पिछले 9 साल के दौरान बायोटायलेट लगाने की पॉलिसी में कई तरह के पेंच थे, लेकिन पिछले साल इन्हें दूर कर दिया गया, जिससे इनके लगाने की रफ्तार बढ़ गई है।