गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ

दिंनाक: 25 Jan 2017 13:51:16

26 जनवरी वह गौरवशाली ऐतिहासिक दिन है जब भारत में आजादी के लगभग 2 साल 11 महीने और 18 दिनों के बाद इसी दिन हमारी संसद ने भारतीय संविधान को पास किया। खुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करने के साथ ही भारत के नागरिकों द्वारा 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। अड़सठ वर्षों के बावजूद आज इस ऐतिहासिक अवसर को हमने मात्र आयोजनात्मक स्वरूप दिया है, अब इसे प्रयोजनात्मक स्वरूप दिये जाने की जरूरत है। इस दिन हर भारतीय को अपने देश में शांति, सौहार्द और विकास के लिये संकल्पित होना चाहिए। कर्तव्य-पालन के प्रति सतत जागरूकता से ही हम अपने अधिकारों को निरापद रखने वाले गणतंत्र का पर्व सार्थक रूप में मना सकेंगे। और तभी लोकतंत्र और संविधान को बचाए रखने का हमारा संकल्प साकार होगा। हमें किरण-किरण जोड़कर नया सूरज बनाना होगा। हमने जिस संपूर्ण संविधान को स्वीकार किया है, उसमें कहा है कि हम एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य है।

आज माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हमारे कदम लगातार सकारात्मक दिशा की ओर बढ़ रहे हैं। एक राष्ट्र के रूप में आज से 68 साल पहले हमने कुछ संकल्प लिए थे जो हमारे संविधान और उसकी प्रस्तावना के रूप में आज भी हमारी अमूल्य धरोहर है। संकल्प था एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, समतामूलक और लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का जिसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार होगा। नागरिक के इन "मूल अधिकारों" में समता का अधिकार, संस्कृति का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार तथा सांविधानिक उपचारों का अधिकार उल्लिखित हैं। अपने मूल अधिकारों की रक्षा और इनको नियंत्रित करने की विधियां भी संविधान में स्पष्ट हैं। इनके लिये हमारे संकल्प हमारी राष्ट्रीय अस्मिता की पहचान हैं जिन्हें हम हर वर्ष 26 जनवरी को एक भव्य समारोह के रूप में दोहराते हैं। लेकिन यह भी सच है कि इन 68 सालों में जहां हमने बहुत कुछ हासिल किया, वहीं हमारे इन संकल्पों में बहुत कुछ आज भी अधूरे सपनों की तरह हैं। भूख, गरीबी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, सांप्रदायिक वैमनस्य, कानून-व्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं जैसे तमाम क्षेत्र हैं जिनमे हम आज भी अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर पाए हैं।

समाजवादी मूल्यों से प्रभावित एक समतावादी समाज की कल्पना और उसे तैयार करने के हमारे संकल्प सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक तीनों स्तर पर अब तक पूर्णतः सफल नहीं रहे। उदाहरण के लिए, जब हमने समाज से जातिगत भेद-भाव को दूर करने का प्रयास किया तो उसे राजनैतिक पनाह मिल गई। नतीजन, दबे-कुचलों के बीच भी कई सामंत फलने-फूलने लगे। कुछ शोषित शक्तिसंपन्न तो जरूर हुए पर शोषित समाज वहीं-का-वहीं रहा। फर्क सिर्फ इतना हुआ कि कल तक जो समाज उपेक्षित था, आज वह "वोट-बैंक" बन गया। यही कारण है कि हर बार की तरह इस बार के पांच राज्यों के चुनाव में जाति एवं धर्म के आधार वोट की राजनीति न करने का प्रस्ताव सामने आया है और यह चुनाव आयोग के लिये एक चुनौती के रूप में खड़ा है।

पिछली सरकार ने सामाजिक न्याय के लिए कदम तो उठाए पर सामाजिक सौहार्द बनाए रखने की जरूरत को भूल कर।  सिर्फ और सिर्फ आरक्षण की राजनीति से सामाजिक न्याय को परिभाषित करना चाहा। नतीजन, समाज दो टुकड़े नहीं बल्कि टुकड़े-टुकड़े में विखण्डित हो गया। आज बार-बार होने वाला जाट, गुर्जर, मीणा और अन्य जातियों की आपसी कलह और आरक्षण के लिए आंदोलन देश की रफ्तार को रोक देते हैं। सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर देश एक संक्रमण-काल से गुजर रहा है। सर्वव्यापी भ्रष्टाचार एक राष्ट्रव्यापी मुद्दा बन चुका है।

हमारे संकल्प अभी अधूरे हैं पर कोशिशें पुरजोर । हम एक असरदार सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक क्रांति की ओर बढ़ रहे हैं। गणतंत्र दिवस का अवसर इस तरह की सार्थक शुरूआत के लिये शुभ और श्रेयस्कर है। आज हमने अनेक कीर्तिमान स्थापित किये हैं । इन पर समूचे देशवासियों को गर्व है। लेकिन साक्षरता से लेकर महिला सुरक्षा जैसे कई महत्वपूर्ण मोर्चों पर अभी भी बहुत काम करना बाकी है। आज देश में राष्ट्रीय एकता, सर्वधर्मसमभाव, संगठन और आपसी निष्पक्ष सहभागिता की जरूरत है।

विसंगतियों एवं विषमताओं को दूर करने के साथ-साथ हमें शिशु मृत्यु दर को नियंत्रित करना है, सड़क हादसों एवं रेल दुर्घटना पर काबू पाना है, प्रदूषण के खतरनाक होते स्तर को रोकना है। बेरोजगारी का बढ़ना एवं महिलाओं का शोषण भी हमारी प्रगति पर ग्रहण की तरह हैं।

मेरा आप सभी लोगों से निवेदन है की भारत देश की अर्थ व्यवस्था, सुरक्षा, संस्कृति व सम्मान को बढ़ाने में अपना योगदान दीजिये।

देश का प्रत्येक नागरिक अपने दायित्व और कर्तव्य की सीमाएं समझे। विकास की ऊंचाइयों के साथ विवेक की गहराइयां भी सुरक्षित रहें। हमारा अतीत गौरवशाली था तो भविष्य भी रचनात्मक समृद्धि का सूचक बने। बस, वर्तमान को सही शैली में, सही सोच के साथ सब मिल जुलकर जी लें तो विभक्तियां विराम पा जाएंगी।

आज उद्देश्यों की ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए औरों की बैसाखियाँ नहीं चाहिए। हमें खुद सीढ़ियां चढ़कर मंजिल तक पहुंचना है। अपनी क्षमताओं पर अविश्वास कर ज्योतिषियों के दरवाजे नहीं खटखटाने हैं। हमें खुद ब्रह्मा बनकर अपना भाग्यलेख लिखना है।

आइये हम प्रण करें की संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य होने के महत्व को सम्मान देने के लिये मनाया जाने वाला यह राष्ट्रीय पर्व मात्र औपचारिकता बन कर न रह जाये। इस हेतु चिन्तन करें और यथा शक्ति देश की गरिमा और प्रगति में अपना योगदान दें। 

 

जय हिन्द। जय भारत।

आपका अपना सांसद,

राकेश सिंह।