अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

दिंनाक: 08 Mar 2017 08:51:53

विश्व में भारत ही ऐसा देश है जहां स्त्री को "मंगला नारायणी मां सप्तशक्तिधारिणी" या जगत की "आदिशक्ति" के रूप में देखा गया है। विश्वमान्य ग्रंथ श्री भगवद्गीता के विभूतियोग नामक दसवें अध्याय के चौतीसवें श्लोक की व्दितीय पंक्ति में भगवान कहते हैं कि कीर्ति:श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृति: क्षमा इन सप्तशक्तियों में मैं ही हूं। अर्थात् स्त्री में इन दैवी शक्तियों का अधिष्ठान है। सृजन, संवर्धन, संरक्षण, संप्रेषण ये उनके विशेष ऊर्जास्थान हैं।

विश्व ने इस बात को प्रखरता से स्वीकार किया है कि भारत वंदनीय तथा पवित्र देश है। भारत देश धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक दृश्यों से परिपूर्ण है। इस देश को पारंपरिक महत्व भी प्राप्त है। विश्व महिला दिवस के संदर्भ में विचार करने पर भारतीय तेजस्वी स्त्रियों के अनेक आदर्श अपनी आंखों के सामने दिखाई देते हैं और उनके कार्य भी आज के दौर में सराहनीय तथा आदर्श होते हैं।

वैदिक काल में ज्ञान के क्षेत्र में गार्गी, मैत्रेयी जैसी विदूषी महिलाएं हुई, जिन्होंने अपनी योग्यता के बल पर कई विषयों पर व्याख्यान दिए। इन विदूषी महिलाओं के व्याख्यानों से उनकी विद्वत्ता का दर्शन तो हुआ ही साथ ही समाज को इस बात भी का पता चला कि महिलाएं भी ज्ञान में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो अपने शौर्य के लिए वीरमाता जिजाबाई, अहिल्या देवी होलकर, रानी लक्ष्मीबाई प्रसिद्ध रहीं। अनेक रणरागिनियों ने इस राष्ट्र की रक्षा हेतु अपनी आहुतियां दी हैं। फिर वह गढ़मंडला की दुर्गावती हो या कित्तुर की चैन्नमां हो या कुतुबुद्दीन ऐबक को क्षत विक्षत कर युध्द भूमि से भागने के लिए विवश करने वाली कर्मावती हो या बाई दाहर हो जिसने मुहम्मद बिन कासिम से मुकाबला किया। किस्तवाड पर आक्रमण करने वाले मिर्जा हैदर को परास्त करने वाली वीर कोकी देवी को कौन नहीं जानता। नगालैण्ड की रानी गाईदिल्न्यु ने अंग्रेजों से मुकाबला किया और अनेक यातनाएं सहीं। वीणा, प्रीति, कल्पना जैसी क्रांतिकारी महिलाओं ने जिस साहस और निर्भयता का परिचय दिया वह हम सभी जानते हैं।

वर्तमान में भारत में स्त्रियों के अत्याचार, आतंकवाद, जीवन को असुरक्षित करने वाले अनेक दृश्य दिखाई दे रहे हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए सभी को आगे आना होगा। स्त्री मुक्ति, स्त्री-नारी, स्री संगठन पर आधारित न रहकर तमाम महिलाएं अमृत से भी अधिक सुख अर्जित करते हुए प्रगति की ओर लगातार बढ़ा रही हैं। स्त्री शिक्षा तथा उसकी सामाजिक गतिविधियों में बढ़ती सहकारिता के कारण स्री शक्ति बढ़ती जा रही है। नारी उत्थान के लिए विविध प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराई गई। इसी तरह दीन-दुखी तथा निराश्रित की सेवा करने में नारी शक्ति का योगदान सराहनीय रहा है। जीवन में राष्ट्रनिष्ठा, नैतिकता तथा संस्कृति के उत्कर्ष में नारी शक्ति का योगदान किसी से छिपा नहीं है।

अपनी समस्याओं के समाधान के लिए अगर महिलाएं सामूहिक रूप से आवाज उठाएंगी तो वह विश्व महिला दिवस के मौके पर महिलाओं का एक बहुत संकेत होगा।
आज विश्व स्तर पर उद्योग, व्यवसाय, स्वास्थ्य, शिक्षा, संस्कार, सहकार, इन सभी क्षेत्रों के साथ-साथ राजनीति क्षेत्र में भी महिलाओं की सहभागिता पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है और महिलाओं के इसी बढ़ते क्षीतिज को ध्यान में रखकर भविष्य में आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए सामूहिक प्रयत्न करना जरूरी है।

आज स्त्री शिक्षा और अर्थाजन के क्षेत्र में पुरुषों के बराबर किंबहुना आगे ही नजर आती है। व्यक्ति स्वतंत्रता की पहचान, पुरुषों के कन्धे से कन्धा मिलाकर स्वत: का स्थान निर्माण करने की सिद्धता, समाज में सहज और स्वतंत्र बर्ताव, रहन-सहन में परिवर्तन इन सभी के साथ जीवन को जो एक गति मिली है उसने एक शतक में बहुत बडा परिवर्तन किया है। ओलम्पिक में मेडल जीतना, पीएसएलवी का सफल परीक्षण, सेना में शौर्य का परिचय, बैंकिंग, चिकित्सा, इंजिनियरिंग इत्यादि में से कौन सा ऐसा क्षेत्र है जहां महिलाएं नहीं हैं। इतनी सफलताओं के बाद भी कन्या भ्रूण हत्या में कमी दिखाई नहीं देती। समाज के इस असंतुलन को संतुलित करना बहुत आवश्यक है। महिलाएं हर चकाचौंध से दूर अपने कार्यालय, अपनी गृहस्थी, अपने परिवार की जिम्मेदारियां निभा रही हैं; क्या उन्हें केवल एक दिन आदर, सम्मान, उपहार, आराम देना पर्याप्त होगा? नहीं! यह सब हर दिन होना आवश्यक है। अत: महिलाओं का कोई "एक दिन" मनाने से अच्छा है साल के हर दिन उनके साथ सम्मान तथा शालीनता का व्यवहार हो।