दिंनाक: 20 Jan 2017 15:19:03 |
स्वामी विवेकानन्द जी बड़े स्वपन्द्रष्टा थे। उन्होंने एक नये समाज की कल्पना की थी, ऐसा समाज जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में कोई भेद नहीं रहे। उन्होंने वेदांत के सिद्धांतों को इसी रूप में रखा। अध्यात्मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धांत की जो आधार विवेकानन्द ने दिया, उससे सबल बौदि्धक आधार शायद ही ढूंढा जा सके।
स्वामी विवेकानन्द जी का दृढ़ विश्वास था कि, “आध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा।”
उनका विश्वास था कि पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है. यहीं बड़े-बड़े महात्माओं व ऋषियों का जन्म हुआ, यही संन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यहीं - केवल यहीं - आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य के लिए जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है।
स्वामीजी के महासमाधि के 116 वर्ष पश्चात् आज भी अनेक नवयुवक स्वामीजी से प्रेरणा पा कर विविध क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। उन्होंने स्वयं कहा था, “मैं मृत्युपर्यंत निरंतर काम करता रहूंगा और मृत्यु के बाद भी संसार की भलाई के लिए काम करता रहूंगा।... जीर्ण वस्त्र के समान इस शरीर को त्याग देना मुझे अच्छा लगेगा। परन्तु मैं कार्य करना नहीं छोडूंगा। सम्पूर्ण विश्व को ईश्वर से एकात्मता की अनुभूति होने तक मैं सब को प्रेरित करता रहूंगा।”
नवयुग के निर्माता स्वामी विवेकानन्दजी ने कहा था, “मैं भविष्य को नहीं देखता, न ही उसे जानने की चिन्ता करता हूं। किन्तु, एक दृश्य मैं अपने मन:चक्षुओं से स्पष्ट देख रहा हूं, यह प्राचीन मातृभूमि एक बार पुन: जाग गई है और अपने सिंहासन पर आसीन है - पहले से कहीं अधिक गौरव एवं वैभव से प्रदीप्त। शान्ति और मंगलमय स्वर में उसकी पुन:प्रतिष्ठा की घोषणा समस्त विश्व में करो।” स्वामीजी के ऐसे शक्तिदायी विचारों ने समस्त देशवासियों को जागृत किया।
स्वामीजी के मन में अनेक प्रश्न उठते और उनके समाधानकारक उत्तर ढूंढने के लिए वह कितनी ही कठिनाइयों का सामना करने के लिए तैयार रहते। युवावस्था में मन में उठे ऐसे ही एक प्रश्न ने उसे दक्षिणेश्वर के श्रीरामकृष्ण परमहंस के पास पहुंचा दिया। उसने उनको पूछा, “क्या आपने ईश्वर को देखा है?”
श्रीरामकृष्ण ने उत्तर देते हुए कहा, “हां, देखा है। वैसे ही जैसे तुम्हें देख रहा हूं, किन्तु अधिक भावपूर्ण रूप से।” इस प्रथम भेंट के उपरान्त अनेक बार नरेन्द्र श्रीरामकृष्ण के पास गयेऔर अन्ततः उनके शिष्य बन गये।
श्रीरामकृष्ण के देहावसान के पश्चात् नरेन्द्रनाथ ने - जो अब संन्यासी स्वामी विवेकानन्द बने थे - सम्पूर्ण भारत का परिभ्रमण किया। भारत के शास्त्रग्रंथों का, लोकजीवन का अध्ययन किया। प्रश्नों को समझने का प्रयास किया। उन दिनों की दयनीय अवस्था को देखकर व्यथित हो उठे। परिभ्रमण के दौरान स्वामीजी भारत के दक्षिणी छोर कन्याकुमारी पहुंचे। 25, 26 और 27 दिसम्बर, 1892 इन तीन दिनों तक समुद्रस्थित ‘श्रीपादशिला’ पर ध्यान किया। व्यथित हृदय को उत्तर मिला।
अपने लिए एक लक्ष्य बनाओ , और उस लक्ष्य को अपना जीवन बनाओ, उसी के बारे में सोचो , उसी के सपने देखो और उसी लक्ष्य के लिए जियो, अपना तन मन, दिमाग को उसी में लगाओ और सारी चिंताओं को भूल जाओ, यही सफलता का रास्ता है।
- स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद के द्वारा कहे गए हर वाक्य अमृत तुल्य हैं। अगर उनके द्वारा कही गयी एक भी बात को हम अपने जीवन में उतार लें तो जीवन सफल हो जायेगा। स्वामी विवेकानंद का पूरा जीवन ही ज्ञान रूपी प्रकाश से भरा हुआ है।
स्वामी जी का प्रेरणादायी जीवन आज भी युवाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। उनका पूरा जीवन एक सफल मार्गदर्शक है, ऐसे महापुरषों के जीवन की एक भी बात अगर हम लोगों ने अपने जीवन में ढाल ली तो सफलता स्वयं आपके कदम चूमेगी।
अपनी आत्मशक्तियों के बल पर स्वामी जी ने न सिर्फ लोगों का मार्गदर्शन किया बल्कि जीवन का सत्य लोगों को बताया, आज अगर स्वामी जी के जीवन की एक भी अच्छाई हमने जीवन में उतार ली तो जीवन में हमें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
आइए, स्वामीजी के प्रेरणादायी शब्दों को साकार करने का संकल्प करें। अपनी भारतमाता को गौरवशाली बनाने के लिए अपना योगदान दें और अपने जीवन का सार्थक करें।